किसानों को सहकारी समितियों से जोड़ने की मुहिम चल रही है .लेकिन नवादा में कई पैक्स अध्यक्ष किसानों को सहकारिता से दूर रखने के लिए जान अड़ाए बैठे हैं। यह सब आगामी पैक्स अध्यक्ष चुनाव को लेकर हो रहा है। सिर्फ अपने समर्थकों को ही पैक्स सदस्य बनाने के पैक्स अध्यक्षों की साजिश के चलते जिले के आवेदकों में कोहराम मचा है। हर दिन किसी न किसी पैक्स के सैकड़ों लोग सहकारिता कार्यालय पहुंचकर हंगामा कर रहें हैं।
क्या है हथकंडा
दरअसल अगामी कुछ माह बाद पैक्स चुनाव होना है। चुनाव में चुनौतियां ज्यादा न हो इसके लिए जिले के कई पैक्स अध्यक्ष सेटिंग करने में जुटे हैं। इसके लिए नया फार्मूला तैयार किया गया है। पैक्स में न ज्यादा सदस्य बनेंगे और ज्यादा खुशामद करनी पड़ेगी। हार के डर से कई पैक्स अध्यक्ष मतदाता सूची तैयार होने से पहले ही अपना पूरा गेम फिक्स कर देना चाहते हैं। पैक्स सदस्यता के लिए पंचायत के सैकड़ों किसानों ने ऑनलाइन आवेदन किया है। कई माह पूर्व से आवेदन ऑनलाइन होने के बाद भी कुछ पैक्स अध्यक्षों ने आवेदन की सत्यापित कॉपी बीसीओ को नहीं सौंपी। अब सौंपी तो सैकड़ों का आवेदन रिजेक्ट कर दिया गया है। बस इसी बात पर चारों तरफ हंगामा बरपा है। जिले के 187 में से 50 से अधिक पैक्स अध्यक्षों के शिकायत जिला सहकारिता कार्यालय में मिल चुके हैं।
15000 किसानों ने दिया था ऑनलाइन आवेदन
15 जुलाई तक पैक्स सदस्यता के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि निर्धारित थी। इस दौरान जिले भर के लगभग 15000 किसानों ने ऑनलाइन आवेदन दिया था। ऑनलाइन करने के तीन माह गुजर जाने के बाद भी सूची में नाम अंकित नहीं किया गया है। कई किसानों ने बताया कि इस मामले जिला सहकारिता पदाधिकारी से भी शिकायत की गई लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
क्या है प्रक्रिया
पैक्स सदस्यता की नई प्रक्रिया के तहत पैक्स का सदस्य बनने के लिए ;किसानों को सहकारिता विभाग के साइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना है। ऑनलाइन होने के बाद आवेदन स्वतः संबंधित बीसीओ के पास पहुंच जाता है। बीसीओ आवेदन का प्रिंट निकालकर सत्यापन के लिए संबंधित पैक्स अध्यक्ष को देते हैं। विभाग द्वारा निर्धारित नियम के तहत 15 दिन के भीतर ही पैक्स अध्यक्ष को आवेदन का सत्यापन कर बीसीओ को सौंप देना है। इसके बाद बीसीओ द्वारा इस जिला सहकारिता कार्यालय भेजा जाता है जहां से सूची को बैंक भेजा जाता है।
केस स्टडी- 1
मेसकौर प्रखंड के बड़ोसर पैक्स के हृदय चैहान, पप्पू कुमार, जयराम प्रसाद, शारदा देवी समेत कुल 86 लोगों का आवेदन पैक्स अध्यक्ष ने रिजेक्ट कर दिया है। अब मैसेज से आवेदन रिजेक्ट होने की जानकारी मिली है। आवेदन रिजेक्ट होने से बौखलाए किसानों ने जिला सहकारिता कार्यालय पहुंचकर हंगामा किया। किसानों का आरोप है कि ऑनलाइन आवेदन करने वाले आवेदकों के आवेदन को पैक्स अध्यक्ष ने बिना कारण बताए ही रद्द कर दिया। अब जिला सहकारिता पदाधिकारी ने सभी के आवेदनों का स्वयं सत्यापन किया है। किसानों को नाम जोड़ने का आश्वासन मिला है।
केस स्टडी- 2
कौआकोल प्रखंड के नावाडीह पैक्स में बड़े पैमाने पर आवेदन रिजेक्ट किए गए हैं। आवेदन रिजेक्ट होने की सूचना मिलने के बाद मिथलेश महतो ,संजय कुमार निराला, बाल्मीकि साव, पिंकी कुमारी, नागमणि देवी ,कुंती देवी, अशोक चैधरी, मनोज कुमार, सातों देवी, विद्यासागर, प्रसाद नरेश, यादव सुरेंद्र यादव, रीना देवी, सरिता देवी, महेंद्र प्रसाद ,दीपक कुमार, सीता देवी, रतन कुमार आदि ने आवेदकों ने शनिवार को जिला सहकारिता कार्यालय का घेराव किया। नाराज किसानों ने नावाडीह पैक्स अध्यक्ष पर पैक्स सदस्य बनाने में मनमानी का आरोप लगाते हुए जमकर नारेबाजी की।
अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप
नागरिक अधिकार संघर्ष समिति के अध्यक्ष दिनेश कुमार अकेला कहते हैं कि पैक्स अध्यक्ष गरीबों को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए जानबूझ कर ऐसा कर रहें हैं। विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों और पैक्स अध्यक्षों की मिलीभगत से आवेदनों को रिजेक्ट किया जा रहा है। पैक्स सदस्यता से पहले पैक्स अध्यक्षों को सत्यापन का अधिकार है। पैक्स अध्यक्ष आवेदन को रिजेक्ट कर सकते हैं लेकिन इसके लिए जरूरी कारण होना जरूरी है।
अधिकारी का क्या है कहना
नवादा के जिला सहकारिता पदाधिकारी का कहना है कि अगर नाजायज तरीके से आवेदन को रिजेक्ट किया गया है तो आवेदक डीसीओ कार्यालय में आवेदन दें। उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा। विभाग स्वयं सत्यापन कर ऐसे आवेदकों का नाम जोड़ेगा। इसमें पैक्स अध्यक्षों से कोई राय नहीं ली जाएगी।
मनमानी रोकने के लिए हुए उपाय
पहले पैक्स सदस्य बनाने में समिति की मनमानी चलती थी। पैक्स अध्यक्ष तरीके से सूची में नाम जोड़ते और हटाते रहते थे। इससे पैक्स अध्यक्षों के मनचाहे लोग ही पैक्स समिति के सदस्य होते थे। इसी मनमानी को खत्म करने के लिए ही राज्य सरकार ने पैक्स की सदस्यता को ऑन लाईन प्रक्रिया शुरू किया था। प्रयास था कि पैक्स का सदस्य बनने के लिए किसानों को पैक्स अध्यक्षों की चिरौरी करने की जरूरत नहीं पड़े। लेकिन सरकार की इस ऑऩलाइन प्रक्रिया के बाद भी पैक्स अध्यक्षों की मनमानी नहीं रूकी।