मोदी-नीतीश की आंधी में बुझ गई RJD की लालटेन…’राजद मुक्त’ हुआ लोकसभा.. जानिए वजहें

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बिहार में प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार के विकास का ऐसा जादू चला कि लालू प्रसाद यादव की पार्टी का सफाया हो गया. साल 1997 में पार्टी की स्थापना के बाद ये पहला मौका है जब लोकसभा चुनाव में आरजेडी का खाता नहीं खुला है. साथ ही लोकसभा राजद मुक्त हो गई. यानि मोदी लहर के बावजूद अपनी सीट जीतने वाले आरजेडी के नेताओं का किला मोदी की सुनामी में ध्वस्त हो गए. लालू यादव की बेटी से लेकर बाहुबली शहाबुद्दीन की पत्नी तक किसी को भी जीत नसीब नहीं हुई

सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ी थी आरजेडी
बिहार में इस बार लोकसभा चुनाव में अगर कोई पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी थी तो वो थी लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी. महागठबंधन में सीट बंटवारे के तहत आरजेडी को 19 सीटें मिली थीं. लेकिन आरजेडी का कोई भी उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हो पाया. लालू यादव की पार्टी की ये अबतक की सबसे बुरी हार बताई जा रही है. मीसा भारती, चंद्रिका राय, शरद यादव, अब्दुल बारी सिद्दीकी, रघुवंश प्रसाद सिंह, तनवीर हसन और हिना शहाब जैसे चेहरे चुनावी मैदान में थे. लेकिन कोई भी लालटेन को बुझने से नहीं बचा पाया

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मोदी मैजिक और नीतीश के विकास का कॉकटेल
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी मैजिक और नीतीश के काम का ऐसा घोल तैयार हुआ कि एनडीए की झोली में 40 में से 39 आ गिरीं. महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने सिर्फ एक किशनगंज जीतने में कामयबा रही है.. देश में इस तरह के रिजल्ट आपातकाल विरोधी लहर और 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानूभूति की लहर में ही देखने को मिले थे. जिन सीटिंग सांसदों ने चुनाव लड़े उन्हें 2014 के मुकाबले कई गुना ज्यादा मतों से जीत मिली. इसकी वजह ये नहीं है कि जनता सांसद से खुश थी बल्कि इसके पीछे मोदी का मैजिक था और बिहार में नीतीश का विकास मॉडल.. इस बार ये अंडर करंट था, जनता ने चुपचाप वोट दिया.

NDA में गजब का तालमेल तालमेल
इस लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीए के घटक दलों के बीच गजब का तालमेल देखने को मिला. बिहार में प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार को खुली छूट दे रखी थी. इसकी वानगी आप ऐसे समझ सकते हैं कि सीतामढ़ी में जदयू के प्रत्याशी ने जब चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था तो नीतीश कुमार ने तुरंत बीजेपी नेता सुनील कुमार पिंटू को अपनी पार्टी में शामिल कराया और सीतामढ़ी से उम्मीदवार बना दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव के दौरान अकेले 171 जनसभाएं कीं, जिनमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ 8, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के साथ 23 और केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान के साथ 22 सभाएं भी शामिल हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि इस जीत ने हमारी जिम्मेदारी और बढा दी है.

धरातल पर नहीं दिखी महागठबंधन की ताकत
वहीं, महागठबंधन मजबूत नजर आ रहा था. लेकिन यह मजबूती धरातल पर नहीं नजर आई और तालमेल का अभाव दिखा. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और आरजेडी के तेजस्वी यादव की संयुक्त रैली काफी देर से हुई. जाति के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश नाकाम रही. विपक्षी दल राष्ट्रवाद के मुद्दे की आलोचना करते रहे और उसका उल्टा एनडीए के उम्मीदवारों को होता गया.

महागठबंधन को खली लालू की कमी
महागठबंधन को इस चुनाव में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की कमी खली. तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कुशल नेतृत्व का घोर अभाव दिखा. 10 सीटों पर महागठबंधन के दलों में तालमेल की कमी और भितरघात साफ दिख रहा था. 2014 की मोदी लहर में भी आरजेडी 4 सीटें जीतने में सफल रही थी.

तेजप्रताप का बागी होना
लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान लालू यादव के बडे़ बेटे तेजप्रताप यादव ने बागी रुप अपना लिया था. शिवहर और जहानाबाद में उन्होंने आरजेडी उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा और खुद को असली आरजेडी बताया. इससे आरजेडी कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश गया. मीसा भारती के चुनाव प्रचार के दौरान भी उनकी भाई विरेंद्र के साथ तीखी नोंकझोंक सामने आई थी. जबकि इस इलाके में भाई विरेंद्र की अच्छी पकड़ है. वहीं, जहानाबाद में तेजप्रताप यादव ने सुरेंद्र यादव का खुलकर विरोध किया था। इतना ही नहीं सारण में अपने ससुर चंद्रिका राय के खिलाफ भी बयानबाजी की थी. उन्होंने कहा था कि चंद्रिका राय को चुनाव हराना है. आपको बता दें कि ये सीटें ऐसी रही कि जहां जीत और हार का अंतर बहुत ही कम रहा. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर तेजप्रताप ने ऐसा कुछ किया होता

बागियों नहीं मना पाना
महागठबंधन के सामने चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती बागियों को न मना पाने की रही. मधुबनी के कांग्रेस के कद्दावर नेता शकील अहमद बागी बन गए. तो मधेपुरा में पप्पू यादव ने ताल ठोंकी. इसका नतीजा रहा है कि पप्पू यादव के खिलाफ आरजेडी ने सुपौल में उनकी पत्नी रंजीता रंजन के खिलाफ भीतरघात किया. साथ ही उम्मीदवारों के चयन पर भी सवाल उठे.

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