
लोकसभा चुनाव से पहले राम जन्मभूमि विवाद मामले में केंद्र सरकार ने बड़ा दांव चला है। सरकार ने अयोध्या विवाद मामले में विवादित जमीन छोड़कर बाकी जमीन को लौटने की मांग है। साथ इसपर जारी यथास्थिति हटाने की मांग की है। सरकार ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की है । सरकार ने 67 एकड़ जमीन में से कुछ हिस्सा सौंपने की अर्जी दी है। ये 67 एकड़ जमीन 2.67 एकड़ विवादित जमीन के चारो ओर स्थित है। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन सहित 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाने को कहा था।
सरकार की दलील
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वो गैर-विवादित 67 एकड़ जमीन इसके मालिक राम जन्मभूमि न्यास को लौटाना चाहती है। इस जमीन का अधिग्रहण 1993 में कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने किया था। कोर्ट ने वहां यथास्थिति बनाए रखने और कोई धार्मिक गतिविधि न होने देने का निर्देश दिया था। सरकार ने अब अपनी याचिका में कहा है कि केवल 0.313 एकड़ जमीन पर ही विवाद है, इसलिए बाकी 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति की जरूरत नहीं है। आपको बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या विवाद को लेकर फैसला सुनाया था। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या में विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था।
1993 में 67 एकड़ जमीन का केंद्र ने कर लिया था अधिग्रहण
1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था। सरकार के इस ऐक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट (अर्जी) को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था और निर्देश दिया था कि जिसके फेवर में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी। रामलला विराजमान की ओर से ऐडवोकेट ऑन रेकॉर्ड विष्णु जैन बताया था कि दोबारा कानून लाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी जा सकती है।
SC में सरकार ने दिया तर्क
अब सरकार ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि जितनी जमीन पर विवाद है केवल उसे ही अपने पास रखे और बाकी गैर विवादित जमीन को राम जन्मभूमि न्यास को लौटने की मांग की है।