गर्व से कहो बिहारी हैं: अंगूठा छाप बिहारी का बेटा केरल में किया टॉप, उपराष्ट्रपति ने दी बधाई

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बिहार के होनहार बेटे मोहम्मद दिलशाद ने साबित कर दिया कि बिहारी जहां भी रहेगा शान से रहेगा. उसके सफलता का परचम हमेशा लहराता रहेगा. परेशानियां चाहे जितनी हो. सफलता तो बिहारी ही हासिल करेगा. क्योंकि दिलशाद ने जो किया है वो किसी चमत्कार से कम नहीं है.

उपराष्ट्रपति ने दी बधाई
बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाला दिलशाद ने केरल में दसवीं कक्षा की राज्य बोर्ड परीक्षा में टॉप किया है। उसे उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शीर्ष स्थान हासिल करने पर ट्वीट कर बधाई दी। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि केरल में दसवीं कक्षा की राज्य बोर्ड परीक्षा में टॉप करने के लिए मोहम्मद दिलशाद को बधाई। दिलशाद केरल के बिनानीपुरम में मलयालम-माध्यम में सरकारी हाई स्कूल का छात्र है। उन्होंने कहा कि दिलशाद के पिता साजिद और उनके परिवार के प्रयास प्रशंसनीय हैं। साजिद के पिता उत्तर भारत के बिहार से केरल पहुंचे प्रवासी श्रमिकों की पहली खेप में शामिल थे।

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मजदूर का बेटा बना टॉपर
मोहम्मद दिलशाद के साजिद बिहार के दरभंगा जिले के रहने वाले हैं. साजिद का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ. अनपढ़ साजिद नौकरी करने के लिए दिल्ली गए. लेकिन फिर यहां से वो साल 1999 में केरल चले गए। साजिद पिछले 20 साल से केरल के एर्नाकुलम जिले में अपनी पत्नी और पांच बच्चों के साथ रहते हैं. साजिद वहीं एक छोटे से जूते की फैक्टरी में काम करते हैं .

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अनपढ़ मां बाप के सपनों को लगा पर
साजिद के सपनों को उनके सबसे बड़े बेटे मोहम्मद दिलशाद ने पूरा कर दिखाया है। उसने केरल की दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में मलयालम माध्यम के सरकारी स्कूल से टॉप करके उन्हें और उनके परिवार को गौरवान्वित किया है। दिलशाद को सभी विषयों में ए + ग्रेड मिला है। साजिद ने जब यह खबर सुनी कि उनके बेटे ने टॉप किया है तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक आए औऱ उन्होंने कहा कि हम तो गरीब थे इसलिए पढ़ाई नहीं की। लेकिन मेरे बेटे ने मुझे गर्व महसूस कराया है, मेरे सपने को पूरा किया है।

बधाईयों का लग गया तांता
एक बिहारी के लिए मलयालम विषय से पढ़ाई करना कितना कठिन होगा. इसका तो आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं. लेकिन मोहम्मद दिलशान ने ये कर दिखाया. जब से बोर्ड के नतीजे घोषित हुए और एक अनपढ़ मजदूर बिहारी का बेटा टॉप किया. तो माने ये खबर जंगल की आग की तरह फैल गया. हर कोई साजिद, उनकी पत्नी आबिदा और बिनानीपुरम गवर्नमेंट हाई स्कूल में शिक्षकों को सरकारी क्वार्टर और मीडिया के बधाई कॉल से बाढ़-सी आ गई है।

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जब स्कूल टीचर ने अपना ट्रासंफर रुकवाया 
मोहम्मद दिलशान के गणित की टीचर सुधी टीएस ने कहा कि वो अपने छात्र के प्रदर्शन से बहुत खुश हैं।उन्होंने कहा कि अपने बेटे को यह कहकर चिढ़ाती थी कि दिलशाद उससे बेहतर स्कोर करेगा। सुधी ने कहा कि मैं ऐसा इसलिए कहती थी कि मेरे बेटे को इससे उन्हें पढ़ाई में झटका लगेगा और वो पढ़ाई के प्रति गंभीर होगा। इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि मैंने दिलशाद के लिए अपना ट्रांसफर रुकवा दिया। उन्होंने कहा कि वास्तव में, मुझे दो साल पहले यहां एक अन्य स्कूल में स्थानांतरण का अवसर मिला था। मुझे अस्थमा की स्थिति है और यह एक औद्योगिक क्षेत्र है। लेकिन मैं सिर्फ उसकी (दिलशाद) मदद करने के लिए रुक गयी। मैं उसे परीक्षाओं में अच्छा करते देखना चाहती थी क्योंकि उसके आगे भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने कहा कि वह दिलशाद के बैच के लिए अक्सर सुबह 6 बजे विशेष कक्षाएं करती है।

60 साल पुराना है दिलशान का स्कूल
दिलशाद का स्कूल छह दशक पुराना एक सरकारी स्कूल है जो, कोच्चि के किनारे एक औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है, जहां अंतरराज्यीय श्रमिकों का एक बड़ा वर्ग कार्यरत है, ऐसे श्रमिकों के बच्चों के आवेदनों की संख्या सभी वर्गों में बहुत अधिक है। जिसमें चार बिहारी छात्र थे. लेकिन, ऐसे छात्रों के लिए पढ़ाई में उत्कृष्टता के लिए प्राथमिक बाधा शिक्षा का माध्यम रहा है। अधिकांश विषय, अंग्रेजी और हिंदी के अपवाद के साथ, मलयालम में इन जैसे स्कूलों में पढ़ाए जाते हैं, जो सीखने की प्रक्रिया को कठिन बनाते हैं।

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‘रोशनी’ ने दिलशान को बनाया रोशन
मलयालम विषय में दूसरे राज्य के छात्रों की परेशानी को देखते हुए एर्नाकुलम जिला प्रशासन ने दो साल पहले रोशनी परियोजना चलाई थी. जिसके तहत प्रवासी छात्रों को एक घंटा अतिरिक्त पढ़ाया जाता था. ‘रोशनी’’ तहत शिक्षकों को मलयालम भाषा से परिचित कराने में, कक्षा 1 से VII तक के छात्रों की मदद करने के लिए कोड-स्विचिंग पद्धति का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। कार्यक्रम में अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए, स्कूल में प्रोत्साहन के रूप में पौष्टिक नाश्ते का भी प्रबंध किया जाता है। दिलशान की सफलता पर बिनानीपुरम स्कूल के शिक्षकों का तर्क है कि दिलशाद जैसे परिश्रमी छात्रों के परिश्रम, जो आर्थिक तंगी वाले परिवार से आते हैं, अनुकरण के योग्य हैं।

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