इनसाइड स्टोरी- जिला परिषद अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मामले में चौंकाने वाला खुलासा

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नालंदा जिला परिषद के निर्वतमान अध्यक्ष तनुजा देवी के अविश्वास प्रस्ताव के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। तनुजा देवी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की साजिश किसने रची थी। कैसे विरोधियों ने तनुजा देवी को उनके ही चाल से मात दे दी। तनुजा देवी कैसे मौजूदा से निर्वतमान बन गई। आपको नालंदा जिला परिषद अध्यक्ष के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की पूरी इनसाइड स्टोरी बताएंगे । पहले ये बताते हैं कि तनुजा देवी की नालंदा जिला परिषद अध्यक्ष की कुर्सी चली गई है। उनके खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया है। तनुजा देवी 19-0 से हार गई हैं। यानि तनुजा देवी के समर्थन में एक भी वोट नहीं पड़े

अपनी ही जाल में फंस गईं तनुजा देवी
पिछली बार जिला परिषद अध्यक्ष पद का चुनाव एक वोट से हारने वाली बिहारशरीफ पूर्वी के जिला परिषद सदस्य कुमारी मीर सिन्हा ने बताया कि तनुजा देवी अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंस गई। वे खुद अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था ताकि ये प्रस्ताव गिर जाए और उनके शेष बचे कार्यकाल में फिर कोई अड़चन न आए लेकिन उनके सहयोगियों ने भी उनका साथ छोड़ दिया।

इसे भी पढ़िए-बड़ी खबर- नालंदा जिला परिषद अध्यक्ष की कुर्सी गई

समझिए पूरा खेल- कैसे अपने बनाए जाल में फंसीं अध्यक्ष
जिला परिषद अध्यक्ष तनुजा कुमारी का दो साल का कार्यकाल पूरा हो गया था। अध्यक्ष ने समर्थकों की मदद से खुद पर ही अविश्वास प्रस्ताव लगवाया, ताकि अगले दो साल के लिए उनकी कुर्सी सुरक्षित हो जाए। उन्होंने डीडीसी से 7 जुलाई को विशेष बैठक का समय मांगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका और विरोधी खेमे को खेल खेलने का पूरा समय मिल गया। बतातें हैं कि इसमें पैसे का भी खेल हुआ। आलम ये रहा कि 34 सदस्यों वाली जिला परिषद में से 14 सदस्य अनुपस्थित रहे और जिला परिषद अध्यक्ष को लेकर महज 20 सदस्यों की उपस्थिति रही। इसमें अध्यक्ष को छोड़कर सभी 19 सदस्यों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया और तनुजा कुमारी देखते-देखते वर्तमान से निवर्तमान हो गईं।

नियम के बारे में जानिए
जिला परिषद संविधान के मुताबिक किसी भी जिला परिषद अध्यक्ष के खिलाफ दो के कार्यकाल पूरा होने के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। अगर उनके खिलाफ एक बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो फिर पूरे कार्यकाल के लिए दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। इसी कानून का फायदा उठाने के लिए तनुजा देवी ने ये चाल चली थी। तनुजा देवी को लग रहा था कि अभी वो चुनाव जीत जाएंगीं और उनकी कुर्सी अगले तीन साल के लिए पक्की हो जाएगी। लेकिन इसमें वो फेल हो गईं।

वोटिंग में कौन-कौन हुए शरीक
सुनील कुमार- सिलाव, कुमारी मीर सिन्हा- बिहारशरीफ, मंजू देवी-रहुई पूर्वी, गौरा देवी-बिहारशरीफ दक्षिणी, नीलम- परबलपुर,  प्रतिमा- एकंगरसराय (दक्षिणी), सूरज देवी- इसलामपुर (पश्चिमी), मीरा- नूरसराय (दक्षिणी), अंशु- एकंगरसराय (उत्तरी), रणवीर- कतरीसराय, नरोत्तम (सरमेरा पश्चिमी), विपिन कुमार (बिन्द), यशोदा देवी (हिलसा पश्चिमी), संगीता देवी (इसलामपुर दक्षिणी), चंद्रकला कुमारी (बेन), प्रतिमा देवी (नूरसराय उतरी), कपिल प्रसाद (थरथरी), अनीता सिन्हा (चंडी पश्चिमी)।

अविश्वास प्रस्ताव लाया और वोटिंग में  गायब रहे 
सरमेरा के नरोत्तम कुमार, अस्थावां के सीताराम सिंह, अस्थावां के बालमुकुंद, हरनौत के कमलेश पासवान, अस्थावां के अनिरुद्ध कुमार, पार्वती देवी, पुरुषोतम जैन एवं अन्य सदस्यों ने ये प्रस्ताव लाया था लेकिन खुद विशेष बैठक में नहीं आए

15 दिनों में नए अध्यक्ष
डीडीसी ने बताया कि निर्वाचन आयोग के निर्देश पर अगली बैठक होगी। 15 दिनों के अंदर अगली बैठक में नए अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा।

कोर्ट से मिलेगा इंसाफ- तनुजा देवी

तनुजा देवी का कहना है  कि वो कोर्ट के शरण में जाएंगी। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ प्रशासन तंत्र का दुरुपयोग  किया गया है। उन्होंने 7 जुलाई को बैठक बुलाई थी। जबकि बैठक 13 जुलाई को बुलाई गई । दरअसल, 30 जून को तनुजा देवी का कार्यकाल दो साल का हुआ था। इसी दिन उन्होंने अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की साजिश रची थी। उन्हें भरोसा था कि वो जीत जाएंगे। जिला प्रशासन ने 7 जुलाई के बदले 13 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विशेष बैठक बुलाई गई। जिसके बाद विरोधियों को तनुजा देवी के खिलाफ मोर्चाबंदी करने का वक्त मिल गया। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान पैसों का जमकर खेल हुआ और 34 सदस्यीय जिला परिषद में सिर्फ 20 सदस्यों ने ही हिस्सा लिया। जिसमें एक खुद जिला परिषद अध्यक्ष भी शामिल थीं ।

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