जमानत, परोल और फरलो में अंतर जानिए

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लालू प्रसाद यादव को बेटे की शादी में शामिल होने के लिए पांच दिन का पेरोल मिला है। जबकि उनकी जमानत की अर्जी पहले ही खारिज हो चुकी है। आपको याद होगा कि संजय दत्त को फरलो पर रिहा किया गया था। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि जमानत, परोल और फरलो में क्या-क्या अंतर है। आज आपको हम आम बोल चाल की भाषा में इसे समझाने की कोशिश करेंगे। परोल और फरलॉ सजायाफ्ता मुजरिम को दिया जाता है, जबकि जमानत उन मुल्जिमों को दिया जाता है जिनकी सुनवाई पेंडिंग है।

जमानत यानि बेल कब मिलती है
जब किसी आरोपी का केस निचली कोर्ट में पेंडिंग होता है, तो आरोपी सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है। इस अर्जी पर फैसला केस की मेरिट पर होता है। इस दौरान आरोपी को अंतरिम जमानत दी जा सकती है या फिर रेग्युलर जमानत दिए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा अग्रिम जमानत दिए जाने का भी प्रावधान है। इस दौरान अदालत शर्तें तय करती है और उन शर्तों और तय जमानत राशि भरने के बाद जमानत या बेल दे दिया जाता है

सजा का सस्पेंड किया जाना क्या है
ये जमानत से थोड़ा अलग है। जब किसी आरोपी को निचली अदालत से दोषी करार दे दिया जाता है। तो वो इस फैसले के खिलाफ उपरी अदालत में अपील करता है। इस दौरान मिलने वाली जमानत को तकनीकी तौर पर सजा सस्पेंड किया जाना कहते हैं। यानि जब निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है तो उस दौरान आरोपी जमानत की मांग करता है। ऐसे में उपरी अदालत सजा को सस्पेंड कर देता है और आरोपी जेल से बाहर आता है । जैसे आपको याद होगा की सलमान खान को काला हिरण मामले में सजा हुई इस फैसले के खिलाफ उपरी अदालत में जमानत की अर्जी दी। जिसके बाद उन्हें जमानत मिल गई थी। यही जमानत सजा का सस्पेंड होना है।

कस्टडी परोल क्या होता है
जब आरोपी के परिवार में किसी की मौत हो जाती है या फिर किसी नजदीकी की शादी हो या फिर गंभीर बीमारी हो गई हो तो उसे कस्टडी परोल पर छोड़ा जाता है। यह अधिकतम छह घंटे के लिए होता है। कस्टडी परोल आरोपी और सजायाफ्ता दोनों को दिया जा सकता है। इस दौरान जेल से निकलने और जेल जाने तक आरोपी के साथ पुलिसकर्मी रहते हैं ताकि आरोपी भाग न सके।

क्या है परोल का प्रावधान
परोल का फैसला प्रशासनिक है। अगर जेल प्रशासन और गृह विभाग से परोल संबंधी अर्जी खारिज हो जाए तो सजायाफ्ता अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। परोल के लिए तभी अर्जी दाखिल की जा सकती है, जब किसी भी अदालत में अर्जी पेंडिंग न हो और मुजरिम सजा काट रहा हो। इसके लिए कई शर्तें हैं। घर में किसी मौत, गंभीर बीमारी, किसी नजदीकी रिश्तेदार की शादी, पत्नी की डिलिवरी आदि के आधार पर परोल की मांग की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि दोषी शख्स का आचरण जेल में अच्छा हो। साथ ही पिछले परोल के दौरान उसने कोई क्राइम न किया हो। दोषी शख्स जेल सुपरिंटेंडेंट को याचिका देता है और वह उस याचिका को गृह विभाग के पास भेजता है, जहां से इस पर निर्णय होता है। अगर प्रशासनिक स्तर पर याचिका खारिज हो जाए तो याचिका हाई कोर्ट के सामने दाखिल की जा सकती है।

किसे परोल नहीं मिल सकता है
ऐसे मुजरिम को परोल नहीं दिया जाता है जिसने रेप के बाद मर्डर किया हो या कई हत्याओं में दोषी करार दिया गया हो या भारत का नागरिक न हो या फिर आतंकवाद या देशद्रोह से संबंधित मामलों में दोषी करार दिया गया हो।

फरलो का प्रावधान क्या है
जिस सजायाफ्ता मुजरिम को पांच साल या उससे ज्यादा की सजा हुई हो और वह तीन साल जेल में काट चुका हो, उसे साल में सात हफ्ते के लिए फरलॉ दिए जाने का प्रावधान है। इसके लिए भी शर्त है कि उसका आचरण सही होना चाहिए। वह आदतन अपराधी न हो, भारत का नागरिक हो और गंभीर अपराध में दोषी न हो। इनकी अर्जी डीजी (जेल) के पास भेजी जाती है और फिर मामला गृह विभाग के पास जाता है। 12 हफ्ते में इस पर फैसला हो जाता है।

अब परोल और फरलो में अंतर समझिए
-परोल के लिए कारण बताना जरूरी होता है जबकि फरलो सजायाफ्ता कैदियों के मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए और समाज से संबंध जोड़ने के लिए दिया जाता है
-परोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है जबकि फरलो ज्यादा से ज्यादा 14 दिन के लिए दिया जा सकता है
परोल के हिसा में जेल की सजा का वक्त नहीं जोड़ा जाता है जबकि फरलो में इसका उल्टा होता है ।

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