देशभर में ईद-उल-जुहा यानि बकरीद 22 अगस्त को मनाई जाएगी. इसका ऐलान इमारत-ए-शरिया और खानकाह-ए- मुजिबिया ने कर दिया है.बारिश का मौसम होने के कारण शहर में चांद नहीं दिखा, लेकिन कई बड़े शहरों में चांद देखे जाने की सूचना के आधार पर ये ऐलान किया गया।
क्या है फर्ज-ए-कुर्बान
ये कुर्बानी का त्योहार है. रमजाने के दो महीने बाद आता है. इसमें कुर्बानी का महत्व बताया गया है. आमतौर पर बकरीद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. जिसे फर्ज-ए-कुर्बान भी कहा जाता है.
बकरीद या ईद उल जुहा का इतिहास जानिए
ये कहानी हजरत इब्राहिम की है. जिन्हें अल्लाह का बंदा माना जाता है. जिनकी इबादत पैगंबर के तौर पर की जाती है. इन्हें अल्लाह का दर्जा प्राप्त है. कहा जाता है कि खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने का आदेश दिया. जिसमें कहा गया कि वे तब ही प्रसन्न होंगे जब हजरत अपने बेइंतहा अज़ीज को अल्लाह के सामने कुर्बान करेंगे. ये आदेश सुनकर हज़रत इब्राहिम ने कुछ देर सोच में पड़ गए. फिर वो अपने सबसे अज़ीज को कुर्बान करने का फैसला लिया. हजरत इब्राहिम के फैसले को सुनते ही सब लोग अचरज में पड़ गए कि आखिर उनकी सबसे चहेती चीज क्या है .. जिसे वो अल्लाह के सामने कुर्बान करने जा रहे हैं.
अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया
लेकिन जब लोगों को ये पता चला कि वो अनमोल चीज उनका बेटा हजरत इस्माइल है, जिसे वो अल्लाह के लिए कुर्बान करने जा रहे हैं. तो सब भौंचक रह गए. कुर्बानी के दिन हजरत इब्राहिम ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी. जब उन्होंने अपने आंखों से पट्टी हटाई तब देखा कि उनका बेटा सुरक्षित है उसकी जगह इब्राहिम के अजीज बकरे की कुर्बानी अल्लाह ने कुबूल की. कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम के कुर्बानी के इस जज्बे से खुश होकर अल्लाह ने उसके बच्चे की जान बक्श दी और उसकी जगह बकरे की कुर्बानी कुबूल ली. तब से ही कुर्बानी चलता आ रहा है जिसे कुर्बानी, बकरीद या ईद उल जुहा के नाम से लोग जानते हैं.
कैसे मनाई जाती है बकरीद
सबसे पहले ईदगाह में ईद सलत पेश की जाती है
पूरे परिवार और जानने वाले लोगों के साथ मनाई जाती है
नए कपड़े पहने जाते हैं और गरीबों को दान दिया जाता है
बच्चों और अपने से छोटों को ईदी दी जाती है
ईद की नमाज अता की जाती है
इस दिन बकरे के अलावा भैंस,ऊंट और गाय की कुर्बानी दी जाती है
बकरे को कुर्बान करने के बाद उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा खुदा को, एक तिहाहई घरवालों और दोस्तों को जबकि एक तिहाई गरीबों में दे दिया जाता है
सबसे पहले ईदगाह में ईद सलत पेश की जाती है
पूरे परिवार और जानने वाले लोगों के साथ मनाई जाती है
नए कपड़े पहने जाते हैं और गरीबों को दान दिया जाता है
बच्चों और अपने से छोटों को ईदी दी जाती है
ईद की नमाज अता की जाती है
इस दिन बकरे के अलावा भैंस,ऊंट और गाय की कुर्बानी दी जाती है
बकरे को कुर्बान करने के बाद उसके मांस का एक तिहाई हिस्सा खुदा को, एक तिहाहई घरवालों और दोस्तों को जबकि एक तिहाई गरीबों में दे दिया जाता है
यानि कुर्बानी का त्योहार त्याग का परिचायक है. इसमें अपने सबसे प्रिय वस्तु का त्याग किया जाता है. खुदा का यही पैगाम है कि बकरीद में अपनी अजीज चीज यानी इच्छाओं को कुर्बान करना चाहिए