बायोफ्लॉक विधि से लाखों कमाएं.. जानिए कम समय और कम लागत में कैसे कमाएं ज्यादा पैसे

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अगर आपके पास तालाब नहीं है और आप मछली पालन करना चाहते हैं तो आप बायो फ्लॉक विधि को अपना सकते हैं. इस विधि के जरिए आप मछली पालन करके कम खर्च और कम समय में ज्यादा पैसे कमा सकते हैं । इस विधि से मछली पालने के लिए किसी तालाब या पोखरे की जरुरत नहीं होती है. तो सबसे पहले आपको बताते हैं कि बायोफ्लॉक विधि क्या होता है

बायोफ्लॉक विधि क्या है
बायोफ्लॉक मछली पालन की एक नई विधि है। जिसमें टैंकों में मछली पाली जाती है। बायो फ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की ग्रोथ उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी।

चारे का खर्चा आधा होता है
मछली टैंकों में पाली जाती. मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट( मल) निकालती है . वो वेस्ट( मल) उस पानी के अंदर ही रहता है और उसी वेस्ट को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें बैक्टीरिया होता है जो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है तो इस तरह से मछली के आधे चारे की बचत हो जाती है. यानि अगर तालाब में अगर चार बोरी चारा देना पड़ता है तो आपको बायोफ्लॉक विधि से दो ही बोरा चारा देना पड़ेगा

तालाब और बायोफ्लॉक (biofloc) तकनीक में अंतर
तालाब में सघन मछली पालन (fish farming) नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डाली तो तालाब का अमोनिया बढ़ जाएगी तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मर जाऐंगी। मछली पालकों को तालाब की निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं जबकि बायो फ्लॉक वाले जार के ऊपर शेड लगाया जाता है। इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है। एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। गंदगी जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।

टैंक बनाने में कितना खर्च आता है
एक टैंक को बनाने में 30 से 50 हजार रुपए का खर्चा आता है जिसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है। टैंक को साइज जितना बढ़ेगा कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी। एक टैंक से साल में 12 सौ किलो तक मछली उत्पादित कर सकते हैं। एक टंकी चार मीटर के व्यास में बनाई जाती है। मात्र चार डिसमिल यानी 918 वर्ग फीट जगह में छह टंकियां स्थापित की जा सकती है। जिसमें तीन लाख रुपए की लागत आ सकती है

24 घंटे बिजली की जरुरत
इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है तभी वो जीवित रहता है। ऐसे में किसान भाई इनवर्टर के जरिए भी टैंकों में बिजली की सप्लाई कर पाते हैं

सबसे बड़ी समस्या : पानी की तापमान
इस सिस्टम में पानी के तापमान को नियंत्रित करने की बड़ी समस्या होती है क्योंकि हर मछली अलग-अलग तापमान में रहती है। उदाहरण के लिए पंगेशियस। ये मछली ठंडे पानी में नहीं रह पाती है तो उसके लिए पॉलीशेड और तापमान को नियंत्रित करने की व्यवस्था बनानी पड़ती है। इस वजह से थोड़ी दिक्कत आती है।

कम लागत,कम पानी में ज्यादा कमाई
एक टैंक से साल में कम से कम 12 सौ किलो मछली का उत्पादन किया जा सकता है. टैंक में सिधी, पंगास, तिलापिया, देसी मांगुर, रोहू और कतला पाला जा सकता है. जो बाजार में दो सौ रुपए किलो बिकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक 10 हजार लीटर पानी में तीन-चार महीने में ही 5 से 6 क्विटल मछली का उत्पादन किया जा सकता है।

किसान भाई अगर आप खेती किसानी के साथ साथ मछली पालन से पैसे कमाना चाहते हैं तो आप बायोफ्लॉक विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. पैसे नहीं होने पर आप मत्सय विभाग से संपर्क कर सकते हैं जो आपके लिए लोन की व्यवस्था करवा सकता है . साथ ही आवश्यक दिशानिर्देश और सलाह भी देता है ।

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