जमुई लोकसभा सीट: पासवान को क्यों लग रहा है बुझ जाएगा ‘चिराग’ ?

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लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जमुई लोकसभा सीट पर मतदान है। जमुई सीट पर इस बार मुकाबला बराबरी का है । ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यहां जलेगा पासवान का चिराग या भूदेव चौधरी का राज होगा ? आपको बताएंगे की आखिर क्यों इस बार डरे हुए हैं पासवान ? आपको जातीय समीकरण भी बताएंगे .लेकिन उससे पहले आप जमुई लोकसभा सीट के बारे में जान लीजिए

जमुई लोकसभा संसदीय सीट के बारे में जानिए
जमुई संसदीय सीटों में वोटरों की कुल संख्या 14,04,016 है. जिसमें से महिला मतदाता 6,51,501 हैं जबकि 7,52,515 पुरुष मतदाता हैं. जमुई लोकसभा सीट तीन जिलों जमुई, मुंगेर और शेखपुरा के इलाकों को मिलाकर बना है. जमुई संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की 6 सीटें हैं. तारापुर, शेखपुरा, सिकंदरा, जमुई, झांझा और चकाई. इनमें से 4 विधानसभा सीटें जमुई जिले में आती हैं. जबकि एक मुंगेर और एक शेखपुरा जिले में.

विधानसभा के मुताबिक बराबरी का टक्कर
जमुई लोकसभा सीट के तहत आने वाले विधानसभा सीटों की बात करें तो दोनों के बीच बराबरी की टक्कर है । क्योंकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 सीटों में से 2-2 सीटें जेडीयू-आरजेडी के खाते में जबकि 1-1 सीट बीजेपी और कांग्रेस के खाते में गई थी. यानि अगर महागठबंधन के पास भी 3 सीटें है तो वहीं एनडीए के खाते में भी तीन सीटें हैं। इस लिहाज से चिराग पासवान और भूदेव चौधरी में कांटे की टक्कर है।

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राजपूत वोटरों की नाराजगी
जमुई लोकसभा सीट में राजपूत वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। लेकिन इस बार जमुई के राजपूत वोटर बीजेपी से नाराज हैं। नाराजगी वजह हैं उनके लोकप्रिय नेता दिग्विजय सिंह की पत्नी की अनदेखी करना। दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल सिंह इस बार निर्दलीय के तौर पर बांका से चुनाव लड़ रही हैं। दिग्विजय सिंह बांका से कई बार सांसद रहे हैं। वे चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी थे। दिग्विजय सिंह का नाम इलाके में काफी सम्मान से लिया जाता है। लेकिन पुतुल सिंह को टिकट न दिए जाने से राजपूत वोटर नाराज हैं ।

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महंगा पड़ सकता है सुमित सिंह का विरोध
जमुई लोकसभा सीट पर इस बार एनडीए के दो नेताओं के बीच लड़ाई जगजाहिर है । नरेंद्र सिंह के बेटे और चकाई से पूर्व विधायक सुमित सिंह और चिराग पासवान के समर्थकों के बीच झड़प हुई थी। जिसके बाद सुमित सिंह ने पुलिस में चिराग पासवान और उनके समर्थकों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। ऐसे में लग रहा है कि सुमित सिंह का विरोध भी चिराग पासवान को भारी पड़ सकता है ।

यादव वोटरों की एकजुटता
बिहार में इस बार यादव वोटरों में एकजुटता दिखने को मिल रहा है । यादव अपने आपको आरजेडी यानि तेजस्वी और लालू के अस्तित्व के तौर पर देख रहे हैं । ऐसे में अगर यादव वोटरों में बिखराव नहीं होता है तो पासवान का चिराग बुझना लगभग तय है । क्योंकि मुस्लिम वोटर किसी भी हाल में चिराग को साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं

जमुई में जातीय समीकरण बड़ा फैक्टर
बिहार में जातीय फैक्टर चुनाव में अहम रोल अदा करता है. जमुई लोकसभा क्षेत्र में इससे अछूता नहीं है. वैसे तो जमुई लोकसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. लेकिन यहां पिछड़ी, अति पिछड़ी और अगड़ी जाति के वोटर्स की अच्छी तादाद है. यहां सबसे ज्यादा यादव वोटर हैं
यादव- 3 लाख
राजपूत- 2 लाख
वैश्य – 2 लाख
भूमिहार- 1 लाख
मुस्लिम- 1.5 लाख
पासवान- 1 लाख
रविदास- 80 हजार
ब्राह्मण- 50 हजार
कायस्थ- 30 हजार

इसके अलावा पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के वोटर्स भी यहां अच्छी संख्या में हैं जो हार-जीत को तय करते हैं.

मैदान में 12 उम्मीदवार
जमुई संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. यहां के चुनावी मैदान में 12 उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं । लेकिन असली मुकाबला लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के भूदेव चौधरी के बीच है । इन दोनों के अलावा 10 और उम्मीदवार जमुई लोकसभ सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं । उसमें सोशियलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया(कम्युनिस्ट) से पंकज कुमार, भारतीय दलित पार्टी से अजय कुमार, और बहुजन समाज पार्टी से उपेंद्र रविदास चुनाव लड़ रहे हैं. बहुजन मुक्ति पार्टी से विष्णु प्रिया , हिंदुस्तान निर्माण दल से वाल्मीकि पासवान चुनाव लड़ रहे हैं. निर्दलीय विरेंद्र कुमार और सुभाष पासवान चुनाव लड़ रहे हैं.

चिराग और भूदेव का सियासी सफरनामा
चिराग पासवान ने अभिनय की दुनिया में भी काम किया है. चिराग पासवान 2014 में वे जमुई से सांसद बने।उसके बाद उन्होंने फिल्म जगत को अलविदा कह दिया और राजनीति में अपने पिता की विरासत को संभालने की कोशिश कर रहे हैं । वहीं, भूदेव चौधरी साल 2009 में जेडीयू के टिकट पर आरजेडी के श्याम रजक को हरा चुके हैं। ऐसे में उनकी दावेदारी को भी कम कर नहीं आंका जा सकता है ।

जमुई सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था. 1962 और 1967 के चुनाव में जमुई सीट पर कांग्रेस जीती. इसके बाद 1971 में सीपीआई के भोला मांझी को यहां से जीत मिली थी. फिर इस सीट के इलाके अलग-अलग सीटों में शामिल कर लिए गए. 2002 के परिसीमन के बाद 2008 में जमुई सीट फिर से अस्तित्व में आई. 2009 के चुनाव में जेडीयू के भूदेव चौधरी ने आरजेडी के श्याम रजक को 30 हजार वोटों से हराया. 2014 के चुनाव में बीजेपी की सहयोगी एलजेपी के चिराग पासवान ने आरजेडी के सुधांशु शेखर भास्कर को हराया.

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