मां, मातृभूमि व मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं

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निज भाषा उन्नति अहैं, सब उन्नति का मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।।

भारत के संविधान के अनुसूची 8 के अनुसार अंग्रेजी भारत की भाषा नहीं है तो फिर भारत के शिक्षा संस्थानों में, भारत के न्यायालयों एवं कार्यालयों में अंग्रेजी क्या कर रही है ?

चुकी 1947 तक भारत अंग्रेजों का गुलाम रहा इसलिए भारत के शासन, शिक्षा एवं न्याय प्रणाली का भाषा अंग्रेजी था। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हमारे संविधान निर्माताओं ने अंग्रेजी भाषा को आगे 15 साल के लिए ही जारी रखने पर ही सहमत हुए थे। इन 15 सालों में भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी की जगह ले लेना था इसके लिए सरकार को 15 बरस का मौका दिया गया था परंतु सरकार की इच्छा शक्ति कमजोर होने के कारण भारतीय भाषा अंग्रेजी की जगह आज आजादी के 74 वर्ष बाद भी नहीं ले सका है। हम आज भी भारतीय लोग भाषाई गुलामी में जकड़े हुए हैं।

संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक भारतीय भाषाओं के लिए प्रावधान किया गया है।

जापान, चीन , फ्रांस , जर्मनी , ब्रिटेन , अमेरिका आदि देश आज विकसित अपनी मातृभाषा के आधार पर ही हुए हैं। कोई भी देश विदेशी भाषा के आधार पर विकसित नहीं हो सकता। हमारे देश की 2% जनता ही अच्छी तरीका से अंग्रेजी पढ़ लिख सकता है 98% जनता आज भी अंग्रेजी सही ढंग से समझ नहीं सकता । इस हालात में देश कैसे विकसित हो पाएगा। दो पर्सेंट जनता ही है जो अंग्रेजी को अच्छी तरीके से जानते हैं वही लोग भारत के भाग्य विधाता बने हुए हैं जबकि 98% जनता देश के लिए अपना बहुत महत्वपूर्ण योगदान अंग्रेजी भाषा में कमजोर होने के कारण नहीं दे पा रहे हैं। जब तक भारत अपने इन 98% जनता को निति निर्धारण के मुख्यधारा में नहीं जोड़ लेता है तब तक भारत विकसित नहीं होगा और ना ही विश्व गुरु बन पाएगा। जिस काल में भारत विश्व गुरु था उस समय भारत में अंग्रेजी नहीं चलती थी।

गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा है कि, ” विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा किसी सभ्य देश में प्रदान नहीं की जाती। विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से छात्रों का मन विकार ग्रस्त हो जाता है और वह अपने ही देश में प्रदेशी के समान मालूम पड़ते हैं।

भारतीय भाषा अभियान 2016 से भारत में भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के जगह स्थान दिलाने के लिए लगातार प्रयासरत है। हरियाणा उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार राजस्थान में भारतीय भाषा अभियान को सफलता मिल चुकी है और बहुत जल्द भारतीय भाषा अभियान पूरे देश में भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के जगह प्रतिष्ठित करवा देगी।

भारत में शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा ही होनी चाहिए, न्यायालयों की भाषा, कार्यालयों की भाषा भारत की ही भाषा होनी चाहिए ।

प्रत्येक व्यक्ति अपने मन के भावों को अपनी मातृभाषा में ही अच्छी तरह से व्यक्त कर सकता है।

भारतीय भाषा अभियान के तरफ से मैं देशवासियों से अपील करना चाहता हूं कि आप जहां भी हो वहीं से भारतीय भाषा अभियान का तन मन धन से समर्थन कीजिए ताकि देश भाषाई गुलामी से आजाद हो सके।

( ये लेख नालंदा लाइव के पाठक परमानंद प्रसाद ने भेजा है। परमानन्द प्रसाद एक अधिवक्ता हैं । साथ ही भारतीय भाषा अभियान के बिहार प्रदेश के संयोजक भी हैं। )

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