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हिजाब को लेकर अभी मामला शांत भी नहीं हुआ था कि अब हलाल मीट को लेकर नया बवाल शुरू हो गया है । हलाल मीट के खिलाफ अभियान शुरू हो गया है। जिसमें कहा गया है कि इस्लामी प्रथाओं के तहत काटे जाने वाले मांस को अन्य देवताओं को नहीं चढ़ाया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला
कर्नाटक में एक हिंदू दक्षिणपंथी गुट हलाल मांस की खरीद के खिलाफ अभियान शुरू किया है। हिंदू जनजागृति समिति ने कहा कि इस्लामी प्रथाओं के तहत काटे जाने वाले मांस को अन्य देवताओं को नहीं चढ़ाया जा सकता है। संगठन के प्रवक्ता मोहन गौड़ा ने कहा कि उगादी के दौरान, मांस की बहुत खरीद होती है और हम हलाल मांस के खिलाफ एक अभियान शुरू कर रहे हैं। इस्लाम के अनुसार, हलाल मांस पहले अल्लाह को चढ़ाया जाता है और इसे हिंदू देवताओं को नहीं चढ़ाया जा सकता है।
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हलाल इस्मामी प्रथा है
मोहन गौड़ा ने कहा कि जब कोई मुसलमान किसी जानवर को काटते हैं, तो हर बार उसका चेहरा मक्का की ओर कर दिया जाता है और नमाज़ पढ़ी जाती है। वैसे में ये मांस हिंदू देवी देवताओं को नहीं चढ़ाया जा सकता है। हिंदू धर्म में जानवर को प्रताड़ित करने में विश्वास नहीं करते हैं और इसे (बिजली के) झटके से मार दिया जाता है।
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हलाल और झटका मीट में क्या है अंतर?
हलाल और झटका मीट में अंतर सिर्फ जानवरों के काटने के तरीके में अंतर है। झटका मीट के लिए जहां जानवर की गर्दन पर तेजधार वाले हथियार से वार किया जाता है और एक ही झटके में उसका काम तमाम कर दिया जाता है, वहीं हलाल मीट के लिए जानवर की सांस वाली नस काट दी जाती है, जिसके कुछ देर बाद ही उसकी जान चली जाती है।
- झटका की तरफदारी करने वाले कहते हैं कि इसमें जानवर को दर्द से नहीं गुजरना पड़ता, क्योंकि एक झटके में ही सबकुछ हो जाता है और उसकी जान लेने से पहले उसे बेहोश भी कर दिया जाता है, ताकि उसे काटने के दौरान तकलीफ न हो।
- हलाल प्रक्रिया के पैरोकारों का कहना है कि सांस की नली कटने से कुछ ही सेकेंड्स में जानवर की जान चली जाती है। उनका यह भी कहना है कि हलाल से पहले जानवरों को खूब खिलाया-पिलाया जाता है, जबकि झटका से जब जानवरों को मारा जाता है तो उसे काफी समय पहले से भूखा-प्यासा राखा जाता है, जिससे पहले ही उसकी दुर्गति हो चुकी होती है।
पहले से चल रहा है हिजाब विवाद
कर्नाटक में पहले से ही हिजाब पर पाबंदी को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। इसे लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी फैसला सुना दिया है। इसके बावजूद हिजाब को लेकर मुस्लिम समाज मानने को तैयार नहीं। ऐसे में हलाल के विरोध से एक नया विवाद को जन्म मिलेगा।