लोहार जाति को लेकर बिहार सरकार का फैसला.. जानिए अब किस श्रेणी में लोहार जाति

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बिहार के लोहार जाति को सुप्रीम कोर्ट से झटके बाद बिहार सरकार ने बड़ा फैसला लिया है । सुप्रीम कोर्ट ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी से बाहर करने का फैसला दिया था । जिसके बाद लोहार जाति को एसटी की सुविधाएं नहीं मिलेंगी.

बिहार सरकार का नया आदेश
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार (Bihar Government) की ओर से इस बारे में नया आदेश जारी हुआ है। जिसे तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है. लोहार जाति के लोगों को पहले से जारी अनुसूचित जनजाति के प्रमाण-पत्र मान्य नहीं होंगे. उन्हें नए सिरे से एनेक्चर-1 का जाति प्रमाण-पत्र बनवाना होगा. इस जाति के सदस्य पहले की तरह अत्यंत पिछड़े वर्गों की सूची (एनेक्चर-1) में शामिल रहेंगे.

नए सिरे से बनवाना होगा जाति प्रमाण-पत्र
बिहार में अब लोहार जाति के लोगों को पहले से जारी अनुसूचित जनजाति के प्रमाण-पत्र मान्य नहीं होंगे. ऐसे में उन्हें अब एनेक्चर-1 का जाति प्रमाण-पत्र बनाना होगा. हालांकि, सरकार की ओर से जारी आदेश में इस बात को स्पष्ट नहीं किया गया है कि पिछले पांच-छह सालों में अनुसूचित जनजाति श्रेणी में आरक्षण के माध्यम से बहाल हुए इस जाति के सरकारी सेवकों का क्या होगा.

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आदेश की कॉपी भेजी गई
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के बाद बिहार सरकार ने लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी की सभी सुविधाएं वापस लेने का आदेश जारी किया है. इस बारे में सभी विभागों के प्रधान सचिव, कमिश्नर, डीएम, समेत आयोग और प्राधिकार को बिहार सरकार (Bihar Government) के सामान्य प्रशासन विभाग ने पत्र भेजकर सूचित कर है.

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किस आधार पर लिया गया निर्णय?
दरअसल, साल 2016 में नीतीश सरकार ने लोहार को अत्यंत पिछड़े वर्गों की सूची से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया था. प्रमाणपत्र के साथ अन्य सुविधाएं देने के भी आदेश थे. जिसके बाद सुनील कुमार राय एवं अन्य बनाम राज्य सरकार एवं अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 21 फरवरी 2022 को सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के वर्ष 2016 के उस आदेश को निरस्त कर दिया था. इसी के आधार पर निर्णय लिया गया है.

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लोहार जाति को लेकर क्यों असमंजस्य रहा
बिहार में लोहार जाति की आबादी करीब 25 लाख है। बिहार सरकार ने लोहार जाति को एसटी का दर्जा दिया लेकिन केंद्र की सूची में ये पिछड़ी जाति में आता है । जिसके बाद ये विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने लोहरा और लोहार जाति को एक ही बताते हुए आरक्षण देने की बात कही। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया

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